झारखंड के इचाक प्रखंड की ऐतिहासिक गाथा,किसने और कब किया था इचाक का नामकरण

इचाक(हजारीबाग)। जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित इचाक प्रखंड स्थित है। जहां रामगढ़ राजा द्वारा सैकड़ो मंदिरों और तालाबो का निर्माण करवाया था। आइए जानते हैं इचाक का नामकरण 18 वीं शताब्दी में राजा सिद्धनाथ सिंह का आखेट खेलने के क्रम में इचाक आगमन हुआ था। जिस समय इचाक घने जंगलों के बीच बसा था। जहां तहां मिट्टी का घर व झोपड़ी था। आज जहां इचाक का मुख्य बाजार है। वहां घने जंगल था। जंगली जानवरों का बोलबाला था। बाघ शेर के अलावा हिरण समेत कई किस्म के जानवर हुवा करते थे। भ्रमण के क्रम में जंगल मे उन्हें एक चाक नुमा बड़ा पत्थर दिखा जहां से मधुर बांसुरी की आवाज निकल रही थी। राजा ने देखा तो उन्होंने कहा ई -चाक है। इससे बंशी की मधुर आवाज आ रही है। उन्होंने ई- चाक उच्चरित शब्द से इस स्थान का नाम इचाक रखा। और इसी स्थान में भगवान श्री कृष्ण का मंदिर बनवाया। जो आज बंशीधर कोठी के नाम से प्रचलित है। इसी स्थान में मन्दिर के दक्षिण अपना किला का निर्माण करवाया। जो किला के नाम पर आज सिर्फ सिंह दरवाजा का पहचान बचा है। बाकि पूरे किले को अवैध रुप से बेच दिया गया और कई दुकानें बनकर खड़ी है। महाराजा सिद्धनाथ सिंह के आगमन के बाद इचाक का काया कल्प होना शुरू हुआ था। महाराजा सिद्धनाथ सिंह और उनके वंशजों ने इचाक में करीब एक सौ से ज्यादा मंदिर और तालाब का निर्माण करवाया था। जिन जिन स्थानों पर मंदिर बनाया गया था, वहां तालाब भी बनवाया था, ताकि मंदिर में पूजा करने वाले लोग तालाब में स्नान कर सके। रामगढ़ राजा के पदमा गमन के बाद भी यहां के मंदिरों में पूजा पाठ में कभी कमी नही आई थी। परन्तु आज स्थिति ऐसा है, कि मंदिर में कोई पूजा करने वाला नही है। राजा अपने समय मे मंदिरों में पूजा पाठ एवं रख रखाव के लिए सैकड़ो एकड़ जमीन भी छोड़ा था जो स्थानीय जमींदारों की निगरानी थी। समय समय पर राजघराने के लोग पूजा पाठ करने आया करते थे। मगर आज रख रखाव के अभाव में इन मंदिरों की स्थिति दयनीय और जर्जर होते जा रही है। करीब 5 किलोमीटर रेडियस के दायरे में सौ से अधिक मंदिर है। यदि स्थानीय विधायक और सांसद का जरा भी ध्यान होता तो निश्चित ही पर्यटन केंद्र (दार्शनिक स्थल) बनाया गया होता। मगर यह सांस्कृतिक धरोहर आज खंडहर बनते जा रहे हैं। इनमें कुछ मन्दिरो की स्थिति तो जर्जर होती जा रही है। यह मंदिर हदारी, धरमु, परासी, कुटुंसुकरी, गुंजा, छावनी आदि गांवो के आसपास स्थित हैं।

इनमें परासी स्थित भगवती मठ 250 वर्ष से अधिक पुराना है। बाजार स्थित बंशीधर कोठी, लक्ष्मीनारायण बडा अखाड़ा, श्रीराम जानकी छोटा अखाड़ा तो आज भी क्षेत्र के लिए आस्था का केंद्र है। बंंशीधर कोठी में जन्माष्टमी में आज भी भव्य रूप से यहाँ श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है। इनके अलावे सूर्यमन्दिर और शिव मंदिर भी आस्था का केंद्र है। सुसारी पोखर के किनारे एक ही स्थान पर तीन मंदिर और भगवती मठ के पास पांच मंदिर स्थित हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि अधिकतर मंदिर के समीप राजा द्वारा तालाब का भी निर्माण करवाया गया था जिनमे सुसारी पोखर, साथ ही दर्जन भर फुलवारी, और बाग बगीचे बनवाये गए थे। आज न तो प्रशासन को इनकी फिक्र है और न ही सांसद, विधायक या स्थानीय जनप्रतिनिधियों को। अगर इन्हें संजोया जाता तो देश के कोने कोने से लोग इन्हें देखने आते। जिससे पूरा क्षेत्र पर्यटन के रूप में उभरता और रोजगार का सृजन होता।

news24jharkhandbihar
Author: news24jharkhandbihar

सबसे तेज, सबसे आगे

आज फोकस में

error: Content is protected !!