लेख….भीम भाई, ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय केरेडारी
दीपक मिट्टी का बना होता है। उसमें तेल और बाती डल जाती है और जल उठता है तो पूज्यनीय बन जाता है। उसको नमस्कार किया जाता है, उसकी रोशनी को सिर-माधे से लगाया जाता है।
दीपावली अर्थात् प्रकाश का पर्व देश भर में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी पर्वों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात (हे भगवान!) मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
दीपावली का धार्मिक मान्यता :- माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अपने जन्म स्थल अयोध्या लौटे थें। अयोध्या वासी का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने अपने अपने घरों में घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है और असत्य का नाश होता है। दीपावली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। दीपावली के दिन नेपाल, भारत, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और औस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर सरकारी अवकाश होता है। दीपावली अकेली नहीं आती, अपने साथ पर्वो का समूह लेकर आती है। दीपावली से पहले दो पर्व और बाद में दो पर्व।
धनतेरस:- दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस मनाया जाता है। इसका संबंध अन्न और स्वास्थ्य से है। इसी दिन वैद्य धनवन्तरी का जन्मदिन मनाया जाता है। और नई खरीफ फसल का प्रसाद नए बर्तनों में डालकर भगवान को भोग लगाया जाता हैं।
नरक चतुर्दशी:- धनतेरस से अगले दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। पौराणिक कथा है कि नरकासुर नाम के दैत्य ने सोलह हज़ार कन्याओं को बंदी बना लिया था। भगवान ने दैत्य को मारकर उन सोलह हज़ार कन्याओं को मुक्त कराया, इसकी याद में मनाया जाता है यह पर्व। दीपावली नरक चतुर्दशी के बाद दीपावली मनाई जाती है। दीपावली है सर्व जगे हुए दीपकों का त्योहार अर्थात् सतयुग का यादगार जहाँ हर देवी-देवता आत्म-स्थित है। दीपक मिट्टी का बना होता है। उसमें तेल और बाती डल जाती है और जल उठता है तो पूज्यनीय बन जाता है। उसको नमस्कार किया जाता है, उसकी रोशनी को सिर-माधे से लगाया जाता है। उस प्रज्वलित दीपक पर धन तथा पदार्थ वारी किये जाते हैं, उसे साक्षी मान प्रण किये जाते हैं। अमावस्या कलियुग का प्रतीक है, प्रकाशित रात्रि सतयुग का प्रतीक है। श्री लक्ष्मी जी का पूजन वास्तव में श्री लक्ष्मी समान श्रेष्ठ लक्षणों को धारण कर देव-पद प्राप्त करने की यादगार है। पूजा के दीपकों में बड़ा दीपक दीपराज परमात्मा शिव की यादगार है। जिसकी ज्योति से अन्य आत्मा रूपी दीपक भी जगमग हो उठते हैं। इस दिन किया जाने वाला दीप-दान, ज्ञान के द्वारा दूसरों को ईश्वरीय मार्ग दिखाने का प्रतीक है। चीनी के बने मीठे हाथी-घोड़े सतयुगी समृद्धि और अखुट खजाने, धन-दौलत के प्रतीक हैं।
भाई-दूज:- गोवर्धन पूजा से अगले दिन यम द्वितीया या भाई-दूज मनाते हैं। यम और यमुना दोनों भाई-बहन थे। यम, धर्मराज के पद पर सुशोभित हुए। बहन हर वर्ष उन्हें टीका लगाती, मुख मीठा कराती और उनकी दीर्घायु की कामना करती। इसके बदले यम ने वरदान दिया कि इस दिन जो भी बहन अपने भाई को टीका लगाएगी, उसे यम का भय नहीं रहेगा।
गोवर्धन पूजा:- दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है। गोवर्धन अर्थात् गउओं का वर्धन। गउएँ समृद्धि की प्रतीक हैं।
Author: news24jharkhandbihar
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